EK LADKI KI STORY

एक गाँव में मीना नाम की एक महिला रहती थी। उसका बचपन कठिन परिस्थितियों में बीता था। वह कभी स्कूल नहीं जा पाई थी। उसकी माँ ने उसका विवाह कम उम्र में ही शांतिपुर के एक छोटे किसान से कर दिया था। उस समय कम उम्र में शादी आम बात थी।

कुछ महीनों बाद मीना गर्भवती हुई। उस समय उसे आराम, पौष्टिक भोजन, प्यार और देखभाल की बहुत आवश्यकता थी, लेकिन ससुराल वालों ने उसे ऐसी जगह रहने पर मजबूर किया जहाँ जानवरों को बाँधा जाता था।

कुछ समय बाद उसने उसी तबेले में एक बेटी को जन्म दिया। बच्ची बहुत सुंदर थी, लेकिन लड़की होने के कारण घर के लोग नाराज़ हो गए। उन्हें लड़का चाहिए था, और लड़की होने से वे नाखुश थे। इसमें मीना का क्या दोष था?

मीना की माँ ने कहा, “अब तेरा घर ससुराल ही है। तू वहीं जा।” यह सुनकर मीना हैरान रह गई। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।

वह मायके से निकल गई, लेकिन ससुराल जाने की इच्छा नहीं थी। अनजान रास्ते पर अपनी बच्ची को लेकर दिन भर चलती रही। शाम होने पर वह भूख और प्यास से परेशान हो गई।

रात होने लगी तो डर बढ़ने लगा। उसके पास खाने को कुछ नहीं था। चलते-चलते वह स्टेशन पहुँची, लेकिन वहाँ भी सुरक्षित महसूस नहीं हुआ। संदिग्ध लोगों को देखकर वह घबरा गई। अंत में उसने सोचा कि रात बिताने के लिए सबसे सुरक्षित जगह श्मशान होगी, क्योंकि वहाँ लोग जाने से डरते हैं।

वह श्मशान की ओर चल पड़ी। वहाँ कुछ चिताएँ जल रही थीं और कुछ बुझ चुकी थीं। जीवित लोगों से उसे मृतकों की दुनिया अधिक सुरक्षित लगी। उसे बहुत भूख और डर लग रहा था।

आसपास देखा तो उसे चिता के पास आटे का एक गोला दिखा। उसने उससे दो मोटी रोटियाँ बनाईं। चिता की लकड़ियों पर उन्हें सेंककर खाया। खाने के बाद उसने श्मशान को प्रणाम किया, क्योंकि उस भूमि ने भूख से तड़पती मीना और उसकी बच्ची को जीवनदान दिया था।

इस तरह मीना सुबह स्टेशन पर रहती और रात को श्मशान में। जो भी खाने को मिलता, उसी से गुजारा करती। एक दिन सुबह उसने अपनी बच्ची को एक जगह बिठाकर पास के नल से पानी पीने गई। जब वापस आई, तो बच्ची वहाँ नहीं थी।

वह रोने लगी और चिल्लाई, “हे भगवान, मेरी बच्ची को कौन ले गया? उसके बिना मैं क्या करूँगी?”

उसने बहुत खोजा, लेकिन बच्ची नहीं मिली। कई दिनों तक मीना अपनी बेटी के लिए रोती रही। उसकी हिम्मत टूटने लगी। वह सोचती, “मेरी छोटी सी बच्ची किस हाल में होगी?” यह सोचकर उसका दिल बैठ जाता।

एक दिन उसने देखा कि कुछ बच्चे स्टेशन पर भीख माँग रहे थे। वे अनाथ थे, जिनका कोई नहीं था। मीना को उन बच्चों में अपनी बेटी की झलक दिखने लगी। अपनी बेटी की याद मिटाने के लिए उसने उन बच्चों को अपने पास बुलाया और उन्हें अपने बच्चे की तरह प्यार करने लगी।

भीख माँगकर वह उन्हें खाना खिलाती और उनका ख्याल रखती। वे सभी बच्चे उसे माँ कहने लगे। धीरे-धीरे मीना के पास 10-12 बच्चे रहने लगे। अब वह सबकी माँ बन गई थी। बच्चों की संख्या बढ़ने से उस छोटे स्टेशन पर गुजारा करना कठिन होने लगा।

मीना उन बच्चों को लेकर बड़े शहर चली गई। वहाँ कई लोगों ने देखा कि कैसे वह अनाथ बच्चों की सेवा करती है। लोगों ने उसके काम की सराहना की। कुछ ने मिलकर उन बच्चों के रहने, खाने और पढ़ाई की व्यवस्था की। उनके लिए घर और स्कूल बनाए गए। धीरे-धीरे मीना के पास सैकड़ों बच्चे हो गए। वह सबकी माँ थी और वे सभी बच्चे उसके अपने बन गए।

मीना ने हर अनाथ बच्चे के पालन-पोषण और शिक्षा में कोई कमी नहीं छोड़ी। उनमें से कई डॉक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर और देश के अच्छे नागरिक बने। उन्होंने अपना घर बसाया और अपनी माँ मीना को कभी नहीं भूला। वे हमेशा उनसे जुड़े रहे।

मीना के काम को चारों ओर प्रसिद्धि मिली। उसे शहरों में अपने अनुभव साझा करने के लिए बुलाया जाने लगा। अब वह कमजोर नहीं, बल्कि एक बहादुर महिला बन गई थी। इतना सब होने के बाद भी, जब मीना सोती थी, तो उसे अपनी बेटी की याद हमेशा आती थी। वह उसे कभी भुला नहीं पाई।

एक दिन अचानक कुछ लोग एक 12 वर्षीय लड़की को लेकर मीना के आश्रम आए। वे बोले, “इसके माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। क्या आप इस बच्ची को अपने पास रखेंगी?”

मीना ने ध्यान से उस बच्ची को देखा तो उसके माथे पर वही निशान था जो उसकी बेटी का था। गौर से देखने पर समझ गई कि यह उसकी खोई हुई बेटी ही है।

मीना अपनी बेटी को देखकर बहुत खुश हुई। उसने उसे गले से लगाया। उसे ऐसा लगा कि उसने दूसरों के बच्चों को पाला, उनकी देखभाल की, तो भगवान ने बदले में उसकी बेटी को सुरक्षित रखा।

Romenticstory

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *